प्राचीन काल में धार्मिक, अध्यात्मिक पूजा-पाठ में शंख की महत्वा रही है | अपने गुणों और प्रभावशीलता के कारण हिंदु पूजा पद्धति में शंख एक अत्यंत शुद्ध पूज्य वस्तु रही है | शंख का अनेक प्राचीन युगों में भी अध्यात्मिक तथा धार्मिक स्वरुप के बारे में काफी वर्णन है | इसे लक्ष्मी जी का सहोदर तथा विष्णु भगवान जी का प्रिय पात्र माना जाता है | प्राचीन काल से लेकर आज तक सभी मांगलिक कार्य हो मंदिर में पूजा, आरती अथवा कोई भी शुभ कार्य हो शंख अवश्य बजाया जाता है | शंख से निकलने वाली ध्वनि से मन में एक अद्भुत पवित्रता, अध्यात्मिक तथा आस्तिकता का संचार होता है | शंख का प्रयोग बहुत शुभ तथा मंगलकारी होता है |
कोई भी पूजा तथा कथा इसके बिना अधूरी मानी जाती है | शंख दो प्रकार के होते है |
१) वामवर्ती शंख
वामवर्ती शंख प्राय: बहुतायत में मिलते है | वामवर्ती शंख उन्हें कहते है जिनका पेट बायी और खुलता है | यह शंख प्राय: आसानी से मिल जाते है | यह शंख बजने के काम आते है | इसकी पवित्र ध्वनि से नकारात्मक ऊर्जा ख़तम हो कर सकारात्मक ऊर्जा बनती है | तथा सभी प्रकार के जादू-टोना भुत-प्रेत पिशाच का असर खत्म हो जाता है | प्रति दिन शंख बजने से ह्रदय रोग नहीं होता है, तथा घर के अन्दर समस्त कीटाणु नष्ट हो जाते है, जिससे की घर के सदस्यों की सेहत अच्छी रहती है |
2) दक्षिणावर्ती शंख
दक्षिणावर्ती शंख कम मात्रा में प्राप्त होते है | दक्षिणावर्ती शंख उन शंखो को कहते है, जिनका पेट दाहिने ओर खुलता है | दक्षिणावर्ती शंख को दहिनावर्ती शंख, विष्णु शंख, जमना शंख तथा लक्ष्मी शंख भी कहा जाता है | समुद्र मंथन के समय जब यह शंख निकला तो भगवान विष्णु ने इसे अपने दाहिने हाथ में धारण किया था इसलिए यह भगवान विष्णु तथा माता लक्ष्मी जी का प्रिय पात्र है | दक्षिणावर्ती शंख में जल भर कर भगवान् जी की मूर्तियों को स्नान कराया जाता है | इसको सुख सम्पति का प्रतिक माना गया है | यह एक दुर्लभ वास्तु है | जिस घर में यह शंख होता है, उस घर में लक्ष्मी निवास करती है | इस शंख को पूजा स्थान पर रखा जाता है | दक्षिणावर्ती शंख से सूर्य भगवान् और शिव शंकर जी को जल देने से शारीरिक मानसिक एवं पारिवारिक कष्ट दूर होते है | तथा मान-सम्मान में वृद्धि होती है |