स्फटिक रत्न एक मणि के समान होता है | इसलिए स्फटिक के बने श्री यंत्र सर्वश्रेष्ट माने जाते है | हिंदु धर्म के चार स्थम्भ चारों शंकराचार्य समझे जाते है | स्फटिक श्री यंत्र की पूजा करते है | हिंदु धर्म के प्रचंड ज्ञाता, महामंडलेश्वर, योगी, तांत्रिक प्रमुख सन्यासी सभी के पूजा स्थल में स्फटिक के श्री यन्त्र का प्रमुख स्थान है | इसे यंत्रराज की संज्ञा दी गयी है, क्योंकि बाकी सभी यंत्रो में मंत्रो के साथ धातुओ की शक्ति समायी हुई होती है परन्तु इसमें मंत्रो की शक्ति के साथ साथ दिव्या अलौकिक स्फटिक मणि की भी सम्पूर्ण शक्तियां होती है |
इसके अधिक प्रभावशाली होने के पीछे एक कारन और है की बाकि यंत्रों को धातु की प्लेट पर लिखा जाता है, जबकि स्फटिक श्री यंत्र को स्फटिक मणि पर उभारा जाता है, जिससे इसकी शक्ति हजारों गुना बढ़ जाती है | स्फटिक के श्री यंत्र को पूजा के स्थान पर रख कर इसकी सच्चे मन से पूजा करने पर धन-धान्य की कमी नहीं होती तथा सुख-सुविधा तथा सम्मान में वृद्धि होती है | महीने में एक बार इसको नमक के पानी से धोना चाहिए |
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